सब संभल Sab Sambhal Lete Hain Hum Poetry Lyrics in Hindi - Zakir Khan


"This beautyfull Poetry lyrics in hindi  is written by zakir khan"

सब संभल लेते हैं हम भाई की
लड़ाई हो या दोस्त के पछड़े
गर्लफ्रेंड का X हो या उसके घर के
बहार नुक्कड़ पर खड़े फुकरे


सब संभल लेते हैं हम हाथो का
प्लास्टर हो या छिले हुए घुटने
गिरे हो बाइक से या खड़े हो टीचर से पीटने
अब बहन तो विदाई पे रो लेगी पर हम नई रोयेंगे
चार दिन की रोड ट्रिप है पर हम व्हील पे नहीं सोयेंगे


एक छोटा सा किस्सा भी हो जाये
तो उसे बड़ा चढ़ा के सुनाएंगे
पर जब दिल टूटेगा ना तो अपने
दोस्तों को भी नहीं बताएँगे
कुकी सब संभल लेते हैं हम 


क्या है ना दारु की कैपेसिटी से हमारी
औकात नापी जाती है
पर सबको घर छोड़ने की ज़िम्मेदारी
भी हमारे हिस्से ही आती है
किसी फिल्म की सैड एंडिंग हो या बेस्ट
फ्रेंड का फॉरेन जाने का फेयरवेल


सॉफ्ट नहीं होते हैं अगर गुस्सा आता तोह आज अभी
पर प्यार जताने वाला सब कुछ कल
क्या है ना क्यूंकि माचो इतने है
पर सेंसिटिव टॉपिक पे थोड़े गड़बड़ हो जाते हैं
यार अपन लोग तो मम्मी को हग करने में भी


awkward हो जाते है
घर की फाइनेंसियल प्रॉब्लम हो या
किसी की तबयत ख़राब
पापा की सोशल स्टैंडिंग हो या सेफ्टी
सिक्योरिटी का सवाल
सब संभल लेते हैं हम


हम वो है जो फूटपाथ पर बहार की तरफ चलते है
साया बनते है परिवार का पर धुप में खुद पलते है
कभी हमारी भी मर्दानगी का पर्दा हटा कर देखना
कभी थाम ना हमारा भी हाथ कैसे हो तुम पूछना


क्यूंकि यार हमारी भी सख्त शकलों
के पीछे एक मासूम सा
बच्चा है जी जिसकी ख्वाइशें घर गाडी आसमान नहीं
अपनापन सच्चा है जी हमे भी डर लगता है
अकेले अँधेरे कमरों में हम भी सो नहीं सकते
और सच कहूँ तोह झूठे है वोह लोग
जो कहते हैं की मर्द रो नहीं सकते


बाकी हाँ इसके अल्वा सब संभल लेते हैं हम
भाई की लड़ाई हो या दोस्त के पछड़े
गर्लफ्रेंड का x हो या उसके घर के
बहार नुक्कड़ पर खड़े फुकरे

सब संभल लेते हैं हम
Written By Zakir Khan 

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